Monday 26 January 2015

जनतंत्र का जन


कौन सोचता हैं गरीबों के बारे में
कौन रखता है मुफलिसों से हमदर्दी  
किसे सुध है आम आदमी की
सबने बिसरा दिया है बापू के 
उस अंतिम आदमी को
छिन गया है जिससे  
बेहतर जीने का अधिकार 
रहता है मलीन बस्तियों में 
जीता हैं बदहाल ज़िन्दगी
जो हैं बेबस और लाचार 







अखबारों में नहीं दिखता 
उस आदमी का चेहरा 
मीडिया को नहीं लुभाती 
हाशिए के लोगों की खबर
उनकी छोटी-बड़ी परेशानियां
पीड़ा और हताशा
मीडिया को भाती है
हर चटखदार खबर
जिससे मिलती है 
टीआरपी को बढ़त 
कमाते हैं सब मुनाफा
भुनाते हैं सब गरीबी 
करते हैं सब झूठा वादा  
बेचते हैं मानवीय भावनाएँ 
अपनी सुविधानुसार
गढ़ते हैं परिभाषाएँ  
उड़ाते हैं गरीबों का मजाक 
'स्लम' के बच्चों की तुलना 
करते हैं डॉग से, बनाते हैं  
स्लम डॉग मिलेनियर
मचाते हैं धूम, पाते हैं ऑस्कर

मनाया जाता है ज़श्न
गणतंत्र का 
ख़ूब दी जाती है दुहाई
जनतंत्र की
खाई जाती है कसमें
संविधान की 
टटोलता नही है कोई
जन-गण के मन को 
अनसुनी है जिसकी आवाज़ 
सुधरे नहीं जिसके हालात 
खड़ा है जो भीड़ में 
विस्मित और निराश 
देखता है दूर से तमाशा 
घुटता रहता है चुपचाप ।

© हिमकर श्याम

(चित्र गूगल से साभार)








22 comments:

  1. सार्थक प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (27-01-2015) को "जिंदगी के धूप में या छाँह में" चर्चा मंच 1871 पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    गणतन्त्रदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. चर्चामंच पर स्थान देने के लिए धन्यवाद!

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  2. सच है और चिंतनीय भी

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  3. आम जनता के बारे में कोई भी नहीं सोचता

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  4. खड़ा है जो भीड़ में
    विस्मित और निराश
    देखता है दूर से तमाशा
    घुटता रहता है चुपचाप ।
    सार्थक प्रस्तुति।

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    1. स्वागत है आपका...हार्दिक आभार!!

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  5. गहरी और सच ... सार्थक रचना है ... गणतंत्र तो आ गया लेकिन तंत्र कहीं खो गया है आज ... गण की असल चिंता किसी को नहीं ...

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  6. बहुत सुंदर प्रस्तुति.

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  7. एकदम सच बयां करती हुई अनुपम रचना...... बेहद उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@मेरे सपनों का भारत ऐसा भारत हो तो बेहतर हो

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    1. स्वागत है आपका...हार्दिक आभार!!

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  9. तंत्र के जाल में आज गण कहीं गुम हो गया है, फिर कैसा गणतंत्र? बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति...

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  10. बहुत सुंदर और सार्थक.

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  11. टटोलता नही है कोई
    जन-गण के मन को
    अनसुनी है जिसकी आवाज़
    प्रिय हिमकर जी बहुत सुंदर ..मन को छूती हुयी रचना.... काश लोग आँखें अब भी खोलें ....
    आप को भी वसंत पंचमी की ढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएं
    भ्रमर ५

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  12. Replies
    1. स्वागत है आपका...हार्दिक आभार

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  13. कटु , पर सत्य

    हकीकत रेखांकित करती रचना

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  14. बेहद मार्मिक कविता। यही दुुआ है कि यह गरीबों के लिए सार्थक सिद्ध हो जाए।

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    1. स्वागत है आपका...हार्दिक आभार!!

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  15. @ Vandana ji, Harshita ji, Digamber Naswa ji, Shanti Garg ji, प्रसन्न वदन चतुर्वेदी जी, Kailash Sharma ji, राजीव कुमार झा जी, Bhramar ji, डॉ. मोनिका शर्मा जी, आप सबों का आभार!!

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  16. और हमारे नेता तो इसमे सबसे पारंगत बने हुए हैं.

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    1. सही कहा...ब्लॉग को समय देने और प्रतिक्रिया के लिए आभार

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