बन इक दूजे का संबल, हर ग़म को हराएँ
पाएँ खुशियाँ ही खुशियाँ, रहे दूर बलाएँ
रहे सुवासित मन उपवन, प्रेम सुगंध लुटाएँ
सौ शरदों तक आप जिएँ, रोग
व्याधि भुलाएँ
प्रेमाशीष मिले हमको, राह
हमें दिखाएँ
पूरे हों स्वप्न सारे, हरपल
मुस्कुराएँ
हम मधुर धुन उमंगों की,
मिलकर गुनगुनाएँ
शादी की सालगिरह पर, हम सब
की दुआएँ
स्वर्ण जयंती मनाया, हीरक
भी मनाएँ।
© हिमकर श्याम
[ विगत 18 जून, 2015 को माँ-पापा के विवाह की 53 वीं सालगिरह थी, एक छोटी सी रचना उनके लिए. तस्वीरें परिणय की 50 वीं वर्षगाँठ की हैं. यह रचना उनको भी समर्पित जिन्होंने हाल-फिलहाल में अपने वैवाहिक जीवन के 50 साल पूरे किये हैं.]
सुन्दर रचना
ReplyDeleteजीवन के पचास बसंत साथ बीते ... इससे ज्यादा और ख़ुशी की बात क्या हो सकती है ...
ReplyDeleteआपको और माँ बाबूजी को बधाई ... दिन यूँ ही गुजरें ..लाजवाब रचना का उपहार पा के ऐसे माता पिता भी धन्य हो गए होंगे ...
बहुत बहुत शुभकामनाएं
ReplyDeletelaajwaab rachna samparpit ki hai aapne.
ReplyDeleteशुबकामनाएं।
ReplyDeleteबहुत अच्छा और अमूल्य उपहार दीया है आपने अपने माता.पिता को । हमारी और से भी शुभकामनाय |
ReplyDeleteहमारी तरफ से भी शुभकामनायें स्वीकारें
ReplyDeleteइस सुंदर रचना के लिए भी बधाई
हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteVery nice post ...
ReplyDeleteWelcome to my blog on my new post.
शुभकामनाऐं !
ReplyDeleteआप सब से स्नेह एवं मंगलकामनाएँ पाकर अभीभूत हूँ, आप सभी का हृदय से धन्यवाद एवं आभार !
ReplyDelete~सादर
बहुत बहुत शुभकामनाएं मम्मी पापा को, साथ हमेशा बना रहे !
ReplyDeleteउनको समर्पित आपकी रचना सुन्दर लगी !
आभार
Deleteshubhkamnayen...maa-papa ko.
ReplyDeleteधन्यवाद
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