मसरूफ़ आप में हैं, कहाँ फुर्सतों में लोग
बस कहने को बचे हैं शनासाइयों में लोग
बस कहने को बचे हैं शनासाइयों में लोग
उकता गये हैं रोज के इन हादसों से अब
डूबे हुए हैं ख़ौफ़ की गहराइयों में लोग
आँखों में ख़्वाब और थे, ताबीर और है
सपने बिखरते देख के मायूसियों में लोग
तदबीर से नसीब बदल कर नहीं देखे
तक़दीर कोसते रहे दुश्वारियों मे लोग
मजबूरियाँ तो हर तरफ़ आती यहाँ नज़र
हैरत से देखता हूँ बड़ी मुश्किलों में लोग
सारा सुकून छीन गया चैन अब किसे
आता नहीं क़रार, परेशानियों में लोग
गंग-ओ- जमन रवायतें जाने किधर गयीं
रिश्तों में तल्खियाँ हैं, फँसे साजिशों में लोग
कितना अज़ीब दौर है अहसास मर चुका
फ़ित्ने फ़साद बढ़ रहे,बलवाइयों में लोग
अफ़सोस है यही कि कोई बोलता नहीं
चुपचाप क्यूँ खड़े हैं तमाशाइयों में लोग
दुनिया को देख ले कभी हिमकर करीब से
सबकुछ गवाँ के बैठे हैं रंगीनियों में लोग
© हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)