Sunday, 14 May 2017

माँ के क़दमों में है ज़न्नत दोस्तो




वह ख़ुदा की ख़ास नेमत दोस्तो
माँ के क़दमों में है ज़न्नत दोस्तो

लाख परदा तुम गिरा लो झूठ पर
छुप नहीं सकती हक़ीक़त दोस्तो

है तरक्क़ी मुल्क़ में हमने सुना
कम कहाँ होती मशक्क़त दोस्तो

ज़िन्दगी किसकी मुकम्मल है यहाँ
साथ सबके इक मुसीबत दोस्तो

इन परिंदों को भला क्या चाहिए 
आबो दाने की जरूरत दोस्तो

मुश्किलों में साथ देता कौन है
पर सभी देते नसीहत दोस्तो

रात भर करवट बदलते हम रहे
अब सही जाती न फ़ुर्क़त दोस्तो

इश्क़ की पाकीज़गी जाने कहाँ
प्यार में भी है कुदूरत दोस्तो

ग़म हमेशा साथ हिमकर के रहा
ज़िंदगानी में अज़ीयत दोस्तो


मुकम्मल : सम्पूर्ण, फ़ुर्क़त : जुदाई, कुदूरत : मैल, अज़ीयत : कष्ट 



© हिमकर श्याम


 

8 comments:

  1. वह ख़ुदा की ख़ास नेमत दोस्तो
    माँ के क़दमों में है ज़न्नत दोस्तो
    वाह ..

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  2. बहुत लजवाब ... माँ के क़दमों में सच में जन्नत है ...
    हर शेर कमाल है ग़ज़ल का ...

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  3. Nice post keep posting and keep visting on.........www.kahanikikitab.com

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  4. बहुत प्रभावपूर्ण रचना......
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपके विचारों का इन्तज़ार.....

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  6. बहुत खूब !
    हिन्दी ब्लॉगिंग में आपका लेखन अपने चिन्ह छोड़ने में कामयाब है , आप लिख रहे हैं क्योंकि आपके पास भावनाएं और मजबूत अभिव्यक्ति है , इस आत्म अभिव्यक्ति से जो संतुष्टि मिलेगी वह सैकड़ों तालियों से अधिक होगी !
    मानते हैं न ?
    मंगलकामनाएं आपको !
    #हिन्दी_ब्लॉगिंग

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