Friday, 25 July 2014

उमड़ घुमड़ घन बदरा आये



उमड़ घुमड़ घन बदरा आये।
नयनों में बन कजरा छाये।।

खेतों में, खलिहानों में
धरती की मुस्कानों में
मन की गांठें खोल-खोल कर
प्रेम सुधा सब पर बरसाये।
उमड़ घुमड़ घन बदरा आये।।

चरवाहों के पट पड़ाव को
हरवाहों के मनोभाव को
यादों के हर घाव-घाव को
हर पल बैरी खूब सताये।
उमड़ घुमड़ घन बदरा आये।।

सरगम-सरगम शहर गांव है
आरोह-अवरोह भरा छांव है
पुरवइया मन के तारों पे
मौसम राग मल्हार सुनाये।
उमड़ घुमड़ घन बदरा आये।।

एक रस कण-कण को अर्पित
धरा द्रौपदी पुलकित-पुलकित
कोई देखो कौन समर्पित
कितने अस्फुट स्वर में गाये।
उमड़ घुमड़ घन बदरा आये।।

प्राणों की मौन पुकारों में
सारी रूठी मनुहारों में
गुल, गुलशन, गुलजारों मे
कौन ये जीवन रस छलकाये।
उमड़ घुमड़ घन बदरा आये।।

© हिमकर श्याम

(चित्र गूगल से साभार)


Tuesday, 15 July 2014

कहाँ छुपे हो मेघ तुम


(चित्र गूगल से साभार) 


सावन में धरती लगे, तपता रेगिस्तान  
सूना अम्बर देख के, हुए लोग हलकान  

कहाँ छुपे  हो मेघ तुम, बरसाओं अब नीर  
पथराये हैं नैन ये,  बचा न मन का धीर

बिन पानी व्याकुल हुए, जीव-जंतु इंसान
अपनी किस्मत कोसता, रोता बैठ किसान  

सूखे-दरके खेत हैंकैसे उपजे धान 
मॉनसून की मार से, खेती को नुकसान

खुशियों के लाले पड़े, बढ़े रोज संताप  
मौसम भी विपरीत है, कैसा यह अभिशाप

सूखे पोखर, ताल सब, रूठी है बरसात  
सूखे का संकट हरो, विनती सुन लो नाथ       

© हिमकर श्याम