अक्सर ही ऐसा होता है
सुकरात यहाँ पे मरता है
बूढ़ा दरख़्त यह कहता है
दिन जैसे तैसे कटता है
पाँवों में काँटा चुभता है
लेकिन चलना तो पड़ता है
मोल नहीं है सच का कोई
पर खोटा सिक्का चलता है
सपने सारे बिखरे जब से
दिल चुपके चुपके रोता है
आया है पतझड़ का मौसम
शाखों से पत्ता झड़ता है
कोई नग़मा फिर छेड़ो तुम
कुछ सुनने को मन करता है
साँसों का चलना है जीवन
पल भर का सब नाता है
हँसने लगता है रब यारो
जब कोई बच्चा हँसता है
आफ़त सर पे रहती हिमकर
पर हँस कर दुःख सहता है
एक शेर यूँ भी
याद बहुत आता है गब्बर
जब कोई बच्चा रोता है
© हिमकर श्याम
[तस्वीर : पुरातत्वविद डॉ हरेंद्र प्रसाद सिन्हा जी की ]