शैलपुत्री के रूप में, करे कष्ट उन्मूल।।
है शुभ फलदायी बहुत, ब्रह्मचारिणी रूप।
मन से करें
उपासना, होगी कृपा अनूप।।
स्वर्ण वर्ण दस हाथ है, शशिघंटा दुतिमान।
शिक्षा, ज्ञान प्रदायिनी, करती हैं कल्याण।।
अष्ट भुजा माँ भगवती, मंद मधुर मुस्कान।
कूष्मांडा ने ही किया, सकल जगत निर्माण।।
सेनापति बन कर लड़ी, देव असुर संग्राम।
माता सनत कुमार की, स्कंदमात है नाम।।
महिषासुर संहारिणी, असुरों का कर नाश।
दुख हरती कात्यायनी, ऐसा है विश्वास।।
स्वयं शक्ति
संधान से, कालरात्रि अवतार।
रौद्र रूप धर कर दिया, रक्त -बीज संहार।।
दया-रूप
माँ गौरि है, हर लेती है
पाप।
श्रद्धा भाव से पूजिए, मिट जाए संताप।।
अष्ट-सिद्धि नव निधि मिले, नमन करे संसार।
सिद्धि- दात्रि करती सदा, सिद्ध शक्ति संचार।।
© हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)