जख़्म सीते रहे, गम छिपाते
रहे
जिंदगी से खुशी दूर होती
रही
ख्वाब बुनते रहे, गुनगुनाते रहे
दिल में ही रह गयीं
आरजूएं मेरी
और ये हादसे कहर ढाते रहे
वक्त की डोर हाथों से
छुटती रही
वो हमें, हम उन्हें आजमाते रहे
अज्म ले कर चले थे रहे
इश्क में
बस क़दम बर क़दम हम उठाते
रहे
कितने नादां थे, उनको मसीहा किया
हाले दिल संगदिलों को
सुनाते रहे
जो हटा रुख से पर्दा तो
टूटा भरम
सजदे में किसको हम सर
झुकाते रहे
हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)
nice lines
ReplyDeleteThanks...
DeleteItna sargarbhit ! Badhai ho !
ReplyDeleteYou have petrified your dreams so as not to be volatile enough to deviate from the hard realities of life ! Excellent ! Thank you !
ReplyDeleteThanks for your kind & encouraging words...
ReplyDeleteअज्म ले कर चले थे रहे इश्क में
ReplyDeleteबस क़दम बर क़दम हम उठाते रहे
कितने नादां थे, उनको मसीहा किया
हाले दिल संगदिलों को सुनाते रहे
शानदार ग़ज़ल हिमकर जी
शुक्रिया आपका
Deleteख़्वाब थे आँखों में वो कसमसाते रहे
ReplyDeleteअहसासों कि सुन्दर बात हिमकर श्याम जी।
हार्दिक स्वागत। ब्लॉग अनुसरण करने के लिए तहेदिल से धन्यवाद
Deleteशुक्रगुज़ार हूँ
ReplyDeleteबहुत उम्दा लिखा
ReplyDeleteशुक्रिया आपका
Deleteकितने नादां थे, उनको मसीहा किया
ReplyDeleteहाले दिल संगदिलों को सुनाते रहे
शानदार ग़ज़ल हिमकर जी
शुक्रिया आपका
Deletebhut acchi rachna keep posting keep visiting on www.kahanikikitab.com
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