Sunday, 17 November 2013

ख्वाब बुनते रहे, गुनगुनाते रहे


हम जहां तक हुआ मुस्कुराते रहे
जख़्म सीते रहे, गम छिपाते रहे

जिंदगी से खुशी दूर होती रही
ख्वाब बुनते रहे,  गुनगुनाते रहे

दिल में ही रह गयीं आरजूएं मेरी
और ये हादसे कहर ढाते रहे

वक्त की डोर हाथों से छुटती रही
वो हमें, हम उन्हें आजमाते रहे

अज्म ले कर चले थे रहे इश्क में
बस क़दम बर क़दम हम उठाते रहे

कितने नादां थे,  उनको मसीहा किया
हाले दिल संगदिलों को सुनाते रहे

जो हटा रुख से पर्दा तो टूटा भरम
सजदे में किसको हम सर झुकाते रहे

हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)

15 comments:

  1. You have petrified your dreams so as not to be volatile enough to deviate from the hard realities of life ! Excellent ! Thank you !

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  2. Thanks for your kind & encouraging words...

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  3. अज्म ले कर चले थे रहे इश्क में
    बस क़दम बर क़दम हम उठाते रहे

    कितने नादां थे, उनको मसीहा किया
    हाले दिल संगदिलों को सुनाते रहे
    शानदार ग़ज़ल हिमकर जी

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  4. ख़्वाब थे आँखों में वो कसमसाते रहे
    अहसासों कि सुन्दर बात हिमकर श्याम जी।

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    1. हार्दिक स्वागत। ब्लॉग अनुसरण करने के लिए तहेदिल से धन्यवाद

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  5. शुक्रगुज़ार हूँ

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  6. बहुत उम्‍दा लि‍खा

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  7. कितने नादां थे, उनको मसीहा किया
    हाले दिल संगदिलों को सुनाते रहे
    शानदार ग़ज़ल हिमकर जी

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  8. bhut acchi rachna keep posting keep visiting on www.kahanikikitab.com

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