नाकामी पर परदा कर
जनता को भरमाया कर
जब मुद्दों की बात उठे
मज़हब में उलझाया कर
भूखों की तादाद बढ़ी
खुशहाली का दावा कर
सीधे साधे लोग यहाँ
ख़्वाब सुनहरे बेचा कर
लफ़्फ़ाज़ी का राजा तू
जुमले यूँ ही फेंका कर
जो भी तुझसे प्रश्न करे
उसके मुँह पर ताला कर
बेबस चीखें कहती हैं
ज़ुल्म न हमपे इतना कर
(चित्र गूगल से साभार)
© हिमकर श्याम