Sunday, 29 December 2013
Sunday, 22 December 2013
बहना, बहते ही रहना
क्या तुम जानते हो
मृत अतीत से
चिपटे रहने का दर्द ?
यदि मैं कहूं भी तो
समझ पाओगे तुम
कितने गहरे होते हैं
बीते दिनों के दर्द।
वही-
चेहरे रंग-पुते
घर-आंगन हो या हों
नुक्कड़-चैराहे
नजर आते हैं
चाहे-अनचाहे।
वैसे भी-
कल के उस
बीते हुए कल में
जीना
धर्म नहीं, मूढ़ता है।
चाहिए तो-
हर पल हमें
बहना, बहते ही रहना
जैसे कि बहती है कोई
सदानीरा
जैसे कि बहता है कोई
झरना।
हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)
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