Thursday, 7 May 2020

खुद को लें पहचान



बाधा चाहे लाख हो, आता कभी न आँच।
बहुत देर छुपता नहीं, सूर्य चन्द्रमा साँच।।

काम करें ख़ुद पर तनिक, ख़ुद से हम अनजान।
ख़ुद से बढ़ कर कुछ नहीं, खुद को लें पहचान।।

सर्वनाश का मूल यह, कोध्र बढ़ाता ताप।
मौन शांति का मार्ग है, चुने इसे हम आप।।

जन्म मरण के चक्र को, कौन सका है रोक।
नाशवान हर चीज़ है, करे अकारथ शोक।।

नफ़रत से नफ़रत बढ़े, बढ़े प्यार से प्यार।
मनुज मनुज में भेद से, बढ़ता है तकरार।।

राजपुत्र सिद्धार्थ को, मिला सत्य का ज्ञान।
पंचशील से बुद्ध ने, किया विश्व कल्याण।।

© हिमकर श्याम


(चित्र गूगल से साभार)


Sunday, 26 April 2020

हर दिन हुआ इतवार है


यूँ लगे हर दिन हुआ इतवार है
ज़िन्दगी की थम गई रफ़्तार है

ढूँढता था दिल कभी फ़ुर्सत मिले
फ़ुर्सतों ने कर दिया बेज़ार है

है यही बेहतर कि हम घर में रहें
कर रही क़ातिल हवा बीमार है

सरहदों के फ़ासलें मिटते गए
पास आने से मगर इनकार है

एक वबा ने हाल ऐसा कर दिया
क़ैद होकर रह गया संसार है

गुम हुई अफ़वाह में सच्ची ख़बर
चार सू अब झूट का व्यापार है

वह दिखाता है तमाशा बारहा
इक मदारी बन गया सरदार है

सड़कें सूनी, साफ़ नदियाँ-आसमाँ
चहचहों से फिर फ़ज़ा गुलज़ार है


वबा : महामारी 

© हिमकर श्याम 


(चित्र गूगल से साभार)


Tuesday, 21 April 2020

नजरबंद संसार


कोरोना से थम गई,  दुनिया की रफ़्तार।
त्राहि-त्राहि जग कर रहा, नजरबंद संसार।।

मरहम रखने को गये, लौटे ले कर घाव।
परहित में जो हैं लगे, उन पर ही पथराव।

ओछी हरकत कर रहे, जड़ मति पत्थर बाज।
जाहिलपन वो मर्ज है, जिसका नहीं इलाज।।

ख़तरे  में  है  ज़िंदगी,  पड़े न कोई फ़र्क़।
तबलीगी ख़ुद कर रहे, अपना बेड़ा गर्क।।

बहुरंगी  इस  देश  में, उत्सवधर्मी  लोग।
जश्न मनाते डूब कर, विपदा हो या रोग।।

ज़हर उगलता मीडिया, फैलाता उन्माद।
टीवी तो हर चीज़ में,  ढूँढा करे जिहाद।।

नफ़रत का इक वायरस, फैल रहा चहुँओर।
संकट के इस दौर में, मजहब का ही शोर।।

हिन्दू मुस्लिम में बँटे, बन न सके इंसान।
चाहे कोई पंथ हो, मानव एक समान।।

© हिमकर श्याम

(चित्र गूगल से साभार)



Friday, 20 March 2020

कोरोना का फोबिया


कोरोना का फोबिया, दिखता है चहुँओर।
ख़बरों में, अख़बार में, टीवी पर है शोर।।

सूक्ष्म वायरस ने किया, दुनिया को हलकान।
अफरा-तफरीे मची गई, सहमा है इंसान।।

हाथ मिलाना छोड़ कर, नमस्कार जोहार।
मास्क लगा कर घूमते, बड़े- बड़े बरियार।।

बंद स्कूल कॉलेज सब, मंद पड़ा बाजार।
फैल रहा है संक्रमण, मानव है लाचार।।

भूल गए सब देखिए, आपस की तकरार।
कोरोना के सामने, डाल दिए हथियार।।

जमाखोर तो लीन हैं, करने में व्यापार।
कोरोना के नाम पर, डर का कारोबार।।

भांति-भांति की भ्रांतियाँ, नुस्खे यहाँ हज़ार।
अपने-अपने स्वार्थ में, कुत्सित बुद्धि विचार।।

अफवाहों के जाल में, मत फँसिए श्रीमान।
घर बाहर हो स्वच्छता, रखिए इतना ध्यान।।

           © हिमकर श्याम

    (चित्र गूगल से साभार)