हवाओं में तरन्नुम है, चमन गाने लगा देखो
फुहारें गुनगुनाती हैं, शजर भी झूमता देखो
घटाएँ झूम कर बरसीं, छमाछम नाचतीं बूँदें
गुलाबी ये फ़ज़ा देखो, नशा बरसात का देखो
बुझाती तिश्नगी धरती, दिखातीं बिजलियाँ जल्वा
किसानों की ख़ुशी देखो, मयूरा नाचता देखो
ज़मीं लगती नहाई सी, नदी लहरा रही जैसे
सुहाना हो गया मंज़र, बड़ी दिलकश फ़ज़ा देखो
क़हर ढाती हैं बरसातें, यहाँ कच्चे मकानों पर
भरा है हर तरफ़ पानी, ख़फ़ा लगता ख़ुदा देखो
भिगोती रात भर हमको तुम्हारी याद की बारिश
कलेजे को चुभोती है, उमड़ती यह घटा देखो
टपकती छत ये रोती है मुक़द्दर पर तेरे 'हिमकर'
हुआ दुश्वार अब जीना, बतायें हाल क्या देखो
© हिमकर श्याम
[तस्वीर : पुरातत्वविद डॉ हरेंद्र प्रसाद सिन्हा जी की ]