महामारी मचा रही, सर्वत्र हाहाकार।
दूसरी लहर का कहर, बेकाबू रफ्तार।।
लाइलाज यह मर्ज़ है, करता
क्रूर प्रहार।
महाकाल के सामने, मानव
है लाचार।।
घुला हवा में अब ज़हर, दाँव
लगे हैं प्राण।
फैल रहा है संक्रमण, माँगे
मिले न त्राण।।
ऊँच-नीच का भेद क्या, सारे
एक समान।
छोटा हो या हो बड़ा, साँसत में है
जान।।
बड़ी भयावह त्रासदी, पड़ी
काल की मार।
घर-घर ही बीमार है, सुने
कौन चीत्कार।।
कब्रगाह में भीड़ है, लम्बी
बहुत कतार।
जलती चिता समूह में, बिन अंतिम संस्कार।।
मौत खड़ी थी द्वार पर, मिला
नहीं उपचार।
अपनों को काँधा नहीं, छूट
गया संसार।।
तड़प- तड़प दम तोड़ते, लोग
बड़े मजबूर।
विपदा के इस
दौर में, सजग रहें भरपूर।।
© हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)