Saturday, 24 May 2014

सुलगती रेत पे



मुख़्तसर सी ज़िन्दगी तो हसरतों में ढल गयी
कुछ उम्मीदों पर कटी, कुछ आंसुओं पे पल गयी  

ले गयी किस्मत जिधर हम चल दिए उठकर उधर
जब यकीं हद से बढ़ा, ये चाल हमसे चल गयी 

ख़्वाहिशों की गठरियां सर पे लिए फिरते रहे
वक़्त की ठोकर लगी जब आह दिल की खल गयी 

किस कदर मातम मचा था चाहतों की क़ब्र पर
पर ग़मे दुनिया को जिस सांचों में ढाला ढ़ल गयी

हम सुलगती रेत पे भटका किये हैं उम्र भर
इन सुराबों से पड़ा नाता, घटाएं छल गयी

आते-आते रह गयी लब पे हमारे फिर हंसी
धड़कनों की नग़मग़ी पे मेरी जान संभल गयी

सब ख़राशें मिट गयीं दिल पर लगी थीं जो कभी
आप आये तो शमा महफिल में जैसे जल गयी

आपने तो ख़ुश्क ही कर दी थी उल्फ़त की नदी
डूब कर मुझ में जो उबरी, होके ये जल-थल गयी

क्या मिला हिमकरदहर में इक मुसीबत के सिवा
हाथ ख़ुशियों के उठे जब भी महूरत टल गयी

© हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)

Saturday, 10 May 2014

माँ


-चित्र गूगल से साभार-



 (मातृ-दिवस पर)

 सर्दियों के मौसम की नर्म धूप लगे माँ
सहनशीलता, त्याग का प्रतिरूप लगे माँ
तपती दुपहरी में शीतल बयार लगे माँ
इंद्र वाटिका का धवल हरसिंगार लगे माँ
सुहागिन के माथे सजा सिंदूर लगे माँ
पूजा की थाली का अक्षत, दूब लगे माँ
व्रती के हाथों का पावन सूप लगे माँ
बिन तीरथ व धाम की देवी रूप लगे माँ
बुझी अंगीठी में आशा की फूँक लगे माँ
कोंपलों से उठी खुशियों की कूक लगे माँ
मरु विस्तार में नेह का अनुबंध लगे माँ
मन से मन को पाटती, सेतुबंध लगे माँ
निखरी चाँदनी में चंदा का प्यार लगे माँ
निर्मल, निश्छल ममता का उद्गार लगे माँ
सारे अरमानों की एक रहगुज़र लगे माँ
हमें दुआओं का अथाह समुन्दर लगे माँ


माँ

© हिमकर श्याम