मुख़्तसर सी ज़िन्दगी तो हसरतों में ढल गयी
कुछ
उम्मीदों पर कटी, कुछ आंसुओं पे पल गयी
ले गयी
किस्मत जिधर हम चल दिए उठकर उधर
जब यकीं
हद से बढ़ा, ये चाल हमसे चल गयी
ख़्वाहिशों
की गठरियां सर पे लिए फिरते रहे
वक़्त
की ठोकर लगी जब आह दिल की खल गयी
किस
कदर मातम मचा था चाहतों की क़ब्र पर
पर
ग़मे दुनिया को जिस सांचों में ढाला ढ़ल गयी
हम सुलगती
रेत पे भटका किये हैं उम्र भर
इन सुराबों
से पड़ा नाता, घटाएं छल गयी
आते-आते
रह गयी लब पे हमारे फिर हंसी
धड़कनों
की नग़मग़ी पे मेरी जान संभल गयी
सब
ख़राशें मिट गयीं दिल पर लगी थीं जो कभी
आप आये
तो शमा महफिल में जैसे जल गयी
आपने तो ख़ुश्क ही कर दी थी उल्फ़त की नदी
डूब कर मुझ में जो उबरी, होके ये जल-थल गयी
क्या
मिला ‘हिमकर’दहर
में इक मुसीबत के सिवा
हाथ
ख़ुशियों के उठे जब भी महूरत टल गयी
© हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)