मिटाना हर बुराई चाहता हूँ
ज़माने की भलाई चाहता हूँ
तेरे दर तक रसाई चाहता हूँ
लकीरों से नहीं हारा अभी मैं
मुक़द्दर से लड़ाई चाहता हूँ
दिलों के दरमियाँ बढ़ती कुदूरत
मैं थोड़ी अब सफाई चाहता हूँ
हुआ जाता हूँ मैं मुश्किल पसंदी
नहीं अब रहनुमाई चाहता हूँ
पलटकर वार करना है जरूरी
मैं अब जोर आज़माई चाहता हूँ
तेरी खामोशियाँ खलने लगी है
कहूँ क्या लब कुशाई चाहता हूँ
खुदा से और क्या माँगू भला मैं
ग़मों से कुछ रिहाई चाहता हूँ
गदाई अब नहीं मंज़ूर हिमकर
मुकम्मल बादशाई चाहता हूँ
© हिमकर श्याम