सफ़र का लुत्फ़ मिले ज़िंदगी
की राहों में
चलूँ जो साथ तेरे इश्क़ की
पनाहों में
महक उठी हैं फिजाएँ किसी के
आने से
बहार बन के समाया है कौन
चाहों में
असर कुछ ऐसा हुआ उनके शोख जलवों का
उन्हीं का अक्स बसा जाता है निगाहों में
गिला रहा न कोई अब हयात से
हमको
सिमट के आ गईं ख़ुशियाँ तमाम
बाँहों में
ख़बर थी अपनी, न थी फ़िक्र
कोई दुनिया की
सुकून इतना मिला हमको
जल्वागाहों में
किसी ने याद किया आज मुझको
शिद्दत से
खड़ीं हैं साथ मेरे हिचकियाँ
गवाहों में
घटा जो आज तेरी सांसों को छुके
उट्ठी
वो बरसे आके मेरे दिल की
प्यासी राहों में
शुमार इश्क़ न हो खानुमा
ख़राबों में
करे न ज़िक्र कोई प्यार का
गुनाहों में
कभी तो हाल सुनो पास आके
'हिमकर' के
बदल न जाए सदा उसकी सर्द
आहों में
© हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)