बाधा चाहे लाख हो, आता कभी न आँच।
बहुत देर छुपता नहीं, सूर्य चन्द्रमा साँच।।
काम करें ख़ुद पर तनिक, ख़ुद से हम अनजान।
ख़ुद से बढ़ कर कुछ नहीं, खुद को लें पहचान।।
सर्वनाश का मूल यह, कोध्र बढ़ाता ताप।
मौन शांति का मार्ग है, चुने इसे हम आप।।
जन्म मरण के चक्र को, कौन सका है रोक।
नाशवान हर चीज़ है, करे अकारथ शोक।।
नफ़रत से नफ़रत बढ़े, बढ़े प्यार से प्यार।
मनुज मनुज में भेद से, बढ़ता है तकरार।।
राजपुत्र सिद्धार्थ को, मिला सत्य का ज्ञान।
पंचशील से बुद्ध ने, किया विश्व कल्याण।।
© हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteसुन्दर दोहे
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर दोहे हिमकर जी ...
ReplyDeleteमन को छूते हैं सभी ...
हार्दिक आभार
Deleteसुन्दर रचना और उतना ही खूबसूरत सन्देश।
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteइस बेहतरीन लिखावट के लिए हृदय से आभार Appsguruji(जाने हिंदी में ढेरो mobile apps और internet से जुडी जानकारी )
ReplyDeleteलाजवाब
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteबहुत सुंदर दोहे हैं सर ।ख़ुद को पहचानना बहुत ज़रूरी है ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर दोहे ।आदरणीय शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteबहुत ही सुंदर रचना, नमन
ReplyDeleteहार्दिक आभार
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