Thursday, 7 May 2020

खुद को लें पहचान



बाधा चाहे लाख हो, आता कभी न आँच।
बहुत देर छुपता नहीं, सूर्य चन्द्रमा साँच।।

काम करें ख़ुद पर तनिक, ख़ुद से हम अनजान।
ख़ुद से बढ़ कर कुछ नहीं, खुद को लें पहचान।।

सर्वनाश का मूल यह, कोध्र बढ़ाता ताप।
मौन शांति का मार्ग है, चुने इसे हम आप।।

जन्म मरण के चक्र को, कौन सका है रोक।
नाशवान हर चीज़ है, करे अकारथ शोक।।

नफ़रत से नफ़रत बढ़े, बढ़े प्यार से प्यार।
मनुज मनुज में भेद से, बढ़ता है तकरार।।

राजपुत्र सिद्धार्थ को, मिला सत्य का ज्ञान।
पंचशील से बुद्ध ने, किया विश्व कल्याण।।

© हिमकर श्याम


(चित्र गूगल से साभार)


15 comments:

  1. बहुत बढ़िया

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  2. बहुत ही सुन्दर दोहे हिमकर जी ...
    मन को छूते हैं सभी ...

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  3. सुन्दर रचना और उतना ही खूबसूरत सन्देश।

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  4. बहुत सुंदर दोहे हैं सर ।ख़ुद को पहचानना बहुत ज़रूरी है ।

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  5. बहुत सुंदर दोहे ।आदरणीय शुभकामनाएँ ।

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  6. बहुत ही सुंदर रचना, नमन

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