Sunday, 29 December 2013

शुभ-मंगल सब मिलकर बोलो




व्यथित मन में मधु रस घोलो
शुभ-मंगल सब मिलकर बोलो

झोली में ले कर ख्वाब नया
देखो आया है साल नया
अरमानों की गठरी खोलो
शुभ-मंगल सब मिलकर बोलो

जो बीत गया सो बीत गया
वह दुःख का गागर रीत गया
उम्मीदों का दर फिर खोलो
शुभ-मंगल सब मिलकर बोलो

दूर नहीं खुशियों का प्याला
उस पार खड़ा है उजियाला
संग ज़माने के अब हो लो
शुभ-मंगल सब मिलकर बोलो

राह नयी है, लक्ष्य नया है
जीवन में संकल्प नया है
पहले अपने पर को तोलो
शुभ-मंगल सब मिलकर बोलो

क्या खोया, क्या पाया हमने
खूब हिसाब लगाया हमने
जख्म पुराने सारे धोलो
शुभ-मंगल सब मिलकर बोलो

छंद नया है, राग नया है
होठों पे फिर गीत नया है
सरगम के नव सुर पे डोलो
शुभ-मंगल सब मिलकर बोलो

पीड़ा- कष्ट मिटे जीवन का
पूरा हो सपना जन जन का
अंतर्मन के बंधन खोलो
शुभ-मंगल सब मिलकर बोलो


 हिमकर श्याम


Sunday, 22 December 2013

बहना, बहते ही रहना



क्या तुम जानते हो

मृत अतीत से

चिपटे रहने का दर्द ?

यदि मैं कहूं भी तो

समझ पाओगे तुम

कितने गहरे होते हैं

बीते दिनों के दर्द।



वही-

चेहरे रंग-पुते

घर-आंगन हो या हों

नुक्कड़-चैराहे

नजर आते हैं

चाहे-अनचाहे।



वैसे भी-

कल के उस

बीते हुए कल में

जीना

धर्म नहीं, मूढ़ता है।



चाहिए तो-

हर पल हमें

बहना, बहते ही रहना

जैसे कि बहती है कोई

सदानीरा

जैसे कि बहता है कोई

झरना।

  
हिमकर श्याम

(चित्र गूगल से साभार)