Sunday, 26 April 2020

हर दिन हुआ इतवार है


यूँ लगे हर दिन हुआ इतवार है
ज़िन्दगी की थम गई रफ़्तार है

ढूँढता था दिल कभी फ़ुर्सत मिले
फ़ुर्सतों ने कर दिया बेज़ार है

है यही बेहतर कि हम घर में रहें
कर रही क़ातिल हवा बीमार है

सरहदों के फ़ासलें मिटते गए
पास आने से मगर इनकार है

एक वबा ने हाल ऐसा कर दिया
क़ैद होकर रह गया संसार है

गुम हुई अफ़वाह में सच्ची ख़बर
चार सू अब झूट का व्यापार है

वह दिखाता है तमाशा बारहा
इक मदारी बन गया सरदार है

सड़कें सूनी, साफ़ नदियाँ-आसमाँ
चहचहों से फिर फ़ज़ा गुलज़ार है


वबा : महामारी 

© हिमकर श्याम 


(चित्र गूगल से साभार)


Tuesday, 21 April 2020

नजरबंद संसार


कोरोना से थम गई,  दुनिया की रफ़्तार।
त्राहि-त्राहि जग कर रहा, नजरबंद संसार।।

मरहम रखने को गये, लौटे ले कर घाव।
परहित में जो हैं लगे, उन पर ही पथराव।

ओछी हरकत कर रहे, जड़ मति पत्थर बाज।
जाहिलपन वो मर्ज है, जिसका नहीं इलाज।।

ख़तरे  में  है  ज़िंदगी,  पड़े न कोई फ़र्क़।
तबलीगी ख़ुद कर रहे, अपना बेड़ा गर्क।।

बहुरंगी  इस  देश  में, उत्सवधर्मी  लोग।
जश्न मनाते डूब कर, विपदा हो या रोग।।

ज़हर उगलता मीडिया, फैलाता उन्माद।
टीवी तो हर चीज़ में,  ढूँढा करे जिहाद।।

नफ़रत का इक वायरस, फैल रहा चहुँओर।
संकट के इस दौर में, मजहब का ही शोर।।

हिन्दू मुस्लिम में बँटे, बन न सके इंसान।
चाहे कोई पंथ हो, मानव एक समान।।

© हिमकर श्याम

(चित्र गूगल से साभार)