वही हालात हैं अब तक पुराने
न कुछ बदला न आए दिन सुहाने
किसे मतलब है ज़ख़्मों से हमारे
कोई आता नहीं मरहम लगाने
हमारी आँख के आँसू न सूखे
चले आए नये ग़म फिर रुलाने
कोई वादा नहीं उसने निभाया
उसे अब याद आते सौ बहाने
लिए उम्मीद हम बैठे अभी तक
वो लायेंगे विदेशों से ख़ज़ाने
ज़रा सय्याद से बचना परिंदों
चला है जाल लेके फिर फँसाने
जुनूँ हिम्मत भरोसा है ख़ुदी पे
चला जुगनू अँधेरे को हराने
जो हँस के कोई मिलता किसी से
बना देती है दुनिया सौ फ़साने
ये दुनिया ख़ुदग़र्ज़ क्यूँ हो गई है
कोई आता नहीं मिलने मिलाने
रहेगी साथ कब तक बेबसी ये
नहीं आता कोई यह भी बताने
भला क्यूँ फेर ली आँखें सभी ने
तुम्हारे लद गए हिमकर ज़माने
© हिमकर श्याम
[तस्वीर : फोटोग्राफिक क्लब रूपसी के अध्यक्ष श्रद्धेय डॉ सुशील कुमार अंकन जी की]