वह रहता है हरदम
युवाओं के कंधे पर सवार
रचता है मन्त्र उन्माद का और
फूँक देता है क्षुब्ध नौजवानों के कानों में
वह करता है
आदमी को उन्मादी भीड़ में तब्दील
हाँक कर ले जाता है अपना शिकार
रचता है मन्त्र उन्माद का और
फूँक देता है क्षुब्ध नौजवानों के कानों में
वह करता है
आदमी को उन्मादी भीड़ में तब्दील
हाँक कर ले जाता है अपना शिकार
बनाता है हथियार
वह करता है कातिलों का झुंड तैयार
बनाता है भय का माहौल
वह करता है ऐसा प्रबन्ध कि
हो जाये तहस नहस सब कुछ
समाज, विचार और सम्वेदना
वह कब्जा कर लेता है
बुद्धि और विवेक पर
वह करता है कातिलों का झुंड तैयार
बनाता है भय का माहौल
वह करता है ऐसा प्रबन्ध कि
हो जाये तहस नहस सब कुछ
समाज, विचार और सम्वेदना
वह कब्जा कर लेता है
बुद्धि और विवेक पर
मुश्किल है निकल पाना उनका
जो शामिल हैं भीड़ में, झुंड में
छीन लिया जाता है उनसे
सोचने, समझने का सामर्थ्य
भीड़ बन करते हैं लोग अपराध
बन जाते हैं वहशी और क्रूर
नाचते हैं अदृश्य इशारों पर
वीभस्त होता है भीड़ का चेहरा
घूमता हैं सभ्य मुखौटे में
भीड़ का अदृश्य रहनुमा
छिपा लेता है खुद को
हिंसक भीड़ की आड़ में
रगो में दौड़ती है उसकी
अमानुषिक बर्बरता।
जो शामिल हैं भीड़ में, झुंड में
छीन लिया जाता है उनसे
सोचने, समझने का सामर्थ्य
भीड़ बन करते हैं लोग अपराध
बन जाते हैं वहशी और क्रूर
नाचते हैं अदृश्य इशारों पर
वीभस्त होता है भीड़ का चेहरा
घूमता हैं सभ्य मुखौटे में
भीड़ का अदृश्य रहनुमा
छिपा लेता है खुद को
हिंसक भीड़ की आड़ में
रगो में दौड़ती है उसकी
अमानुषिक बर्बरता।
© हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)