अज़मे सफ़र सरों पे उठाना है
दूर तक
ले ज़िन्दगी को साथ में जाना है दूर तक
परछाइयां भी छोड़ गयी साथ अब मेरा
पर ग़म को मेरा साथ निभाना है दूर तक
जी भर के ज़िन्दगी से करें प्यार कैसे हम
आहो व आंसुओं का ख़ज़ाना है दूर तक
जिस राह पे खड़ी थीं हवाएं वो सिरफिरी
उस राह पे चराग जलाना है दूर तक
ये जिन्दगी नहीं है वफाओं का सिलसिला,
सांसों के टूटने का फसाना है दूर तक
आता नहीं करार दिले बेकरार को
बेचैनियों को अपनी भुलाना है दूर तक
©हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से
साभार)
अज़मे सफ़र : सफ़र का संकल्प