Thursday, 14 October 2021

होगी कृपा अनूप

 


एक  हाथ में है कमल
,  दूजे में त्रिशूल।

शैलपुत्री के रूप में, करे कष्ट उन्मूल।।

 

है शुभ फलदायी बहुत, ब्रह्मचारिणी रूप।

मन  से करें उपासनाहोगी कृपा अनूप।।

 

स्वर्ण वर्ण दस हाथ है, शशिघंटा दुतिमान।

शिक्षा, ज्ञान प्रदायिनी, करती हैं कल्याण।।

 

अष्ट भुजा माँ भगवती, मंद मधुर मुस्कान।

कूष्मांडा ने ही किया, सकल जगत निर्माण।।

 

सेनापति बन कर लड़ी, देव असुर संग्राम।

माता सनत कुमार की, स्कंदमात है नाम।।

 

महिषासुर संहारिणी, असुरों का कर नाश।

दुख  हरती  कात्यायनी, ऐसा है विश्वास।।

 

स्वयं  शक्ति संधान से, कालरात्रि अवतार।

रौद्र रूप धर कर दिया, रक्त -बीज संहार।।

 

दया-रूप  माँ गौरि  है, हर  लेती  है पाप।

श्रद्धा भाव से पूजिए, मिट जाए संताप।।

 

अष्ट-सिद्धि नव निधि मिले, नमन करे संसार।

सिद्धि- दात्रि करती सदा, सिद्ध शक्ति संचार।।

© हिमकर श्याम

(चित्र गूगल से साभार)

 

Saturday, 2 October 2021

वैष्णव जन की बात

 

गाँधी ने जग को दिया, सर्वोदय का ज्ञान।

सत्य, अहिंसा, सादगी, बापू की पहचान।।


सत्य रूप भगवान का, सत्य करे बदलाव।

गांधी का संदेश यह,  सर्व-धर्म समभाव।।


बापू करते थे सदा, वैष्णव जन की बात।

अब भी दुर्बल दीन के, पहले से हालात।।


रोक न पाया था उन्हें, कोई भी अवरोध।

छुआछूत के भाव का, करते रहे विरोध।।


भूख, गरीबी ने दिया, बुरी तरह झकझोर।

सेवा का संकल्प ले, बढ़े लक्ष्य की ओर।।


गांधी ने जग को दिया, सत्याग्रह का मंत्र।

शांति- समर संघर्ष से, देश हुआ स्वतंत्र।।


स्व-निर्भरता शक्ति का, चरखा बना प्रतीक।

गांधी की अवधारणा, लगती बड़ी सटीक।।


अंतिम जन लाचार तो, आज़ादी है व्यर्थ।

सर्वोदय की भावना, स्वतंत्रता का अर्थ।।


अब गाँधी के नाम पर, होते वाद-विवाद।

महिमामंडित गोडसे, सोच नई आबाद।।

© हिमकर श्याम

(चित्र गूगल से साभार)

                                                                    

Wednesday, 5 May 2021

बहरे शाह वज़ीर

 


हवा विषैली हर तरफ़, मचा रही उत्पात।
क्रूर काल पहुँचा रहा, अंतस् को आघात।।
 
महामारी विकट हुई, बनी गले की फाँस।
हाँफ रही है ज़िंदगी, उखड़ रही है सांस।।

चूक आकलन में हुई, मचा हुआ कुहराम।
हाल बुरा है देखिए, सिस्टम है नाकाम।।
 
सत्ता पाने के लिए, नेता हुए अधीर।
कोरोना का भय नहीं, घूम रहे हैं वीर।।
 
बस चुनाव की फ़िक्र में, शासक हैं मशगूल।
हर दिन ही वो तोड़ते, अपने नियम उसूल।।
 
मतलब अपना साध कर, बैठे आँखें फेर।
कैसे बचे यकीन अब, चारों ओर अँधेर।।

त्राहि-त्राहि हर ओर है, सुने न कोई पीर।
सत्ता बहरी हो गई, बहरे शाह वज़ीर।।
 
प्राण-वायु को रोक कर, क़ीमत रहे वसूल।
ज़हर बाँटते जो रहे, उनसे आस फ़ुज़ूल।।

                                                                © हिमकर श्याम

                                                              (चित्र गूगल से साभार)

                                                                      
                                                                     

Sunday, 25 April 2021

साँसत में है जान

 


महामारी मचा रहीसर्वत्र हाहाकार।
दूसरी लहर का कहरबेकाबू रफ्तार।।

लाइलाज यह मर्ज़ है, करता क्रूर प्रहार।
महाकाल के सामने, मानव है लाचार।।

घुला हवा में अब ज़हर, दाँव लगे हैं प्राण।
फैल रहा है संक्रमण, माँगे मिले न त्राण।।

ऊँच-नीच का भेद क्या, सारे एक समान।
छोटा हो या हो बड़ासाँसत में है जान।।

बड़ी भयावह त्रासदी, पड़ी काल की मार।
घर-घर ही बीमार है, सुने कौन चीत्कार।।

कब्रगाह में भीड़ है, लम्बी बहुत कतार।
जलती चिता समूह में, बिन अंतिम संस्कार।।

मौत खड़ी थी द्वार पर, मिला नहीं उपचार।
अपनों को काँधा नहीं, छूट गया संसार।।

तड़प- तड़प दम तोड़ते, लोग बड़े मजबूर।
विपदा के  इस दौर में, सजग रहें भरपूर।।

© हिमकर श्याम


(चित्र गूगल से साभार)

 

 

Monday, 29 March 2021

खुली ढोल की पोल


जोगीरा सारा रारारा...!!! 

चरचा में है कांड वसूली, अघाड़ी परेशान।।
परमबीर के लेटर बम से, सियासी घमासान।
जोगीरा सारा रारारा...!!!

रवींदर सा दिक्खे नरेंदर, बदला जब से वेश।
सत्याग्रह भी ट्रेंड हुआ है, भौचक बंगलादेश।।
जोगीरा सारा रारारा...!!!

एक रात में कटा प्लास्टर, खुली ढोल की पोल।
वैरी जन ट्विटर पर कहते, दीदी का सब झोल।।
जोगीरा सारा रारारा...!!!

एलजी के हाथों में पावर,  सत्ता की तकरार।
नाराज़ केजरी माँग रहे, वापस दो अधिकार।।
जोगीरा सारा रारारा...!!!

हुई सदन में धक्का-मुक्की, जम जूतम पैजार।
नेताओं की गुंडागर्दी, शर्मनाक व्यवहार।।
जोगीरा सारा रारारा...!!!

तेल गैस सब उछल रहा है, बढ़े दाम दिन-रात।
राष्ट्रप्रेम में भूल गए सब, महंगाई की बात।।
जोगीरा सारा रारारा...!!!

बैंक बिकेगा, भेल बिकेगा, और बिकेगा रेल।
प्रश्न करेगा कोई जब तो, पहुँचा देंगे जेल।।
जोगीरा सारा रारारा...!!!

खूँटा गाड़े टिकैत बैठा, हल के बिना किसान।
मुँह फेरे शासक है बैठा, अड़ियल है परधान।।
जोगीरा सारा रारारा...!!!

कीचड़ पर ही भिनके माखी , खिले कमल का फूल।
मुकुल- शुभेंदु भगवाधारी, बिखर गया तृण मूल।।
जोगीरा सारा रारारा...!!!

संघ भवन से चलती देखो, कॉरपोरेट सरकार।
जोर लगाता पप्पू लेकिन, खिसक रहा आधार।।
जोगीरा सारा रारारा...!!!

© हिमकर श्याम


(चित्र गूगल से साभार)

Thursday, 25 March 2021

अच्छी नहीं लगती



 


 रवानी गर नहीं हो तो नदी अच्छी नहीं लगती
कोई फ़ितरत बदलती चीज़ भी अच्छी नहीं लगती

जहाँ इंसानियत के नाम पर कुछ भी नहीं बाक़ी
वहाँ तहज़ीब की बेचारगी अच्छी नहीं लगती

छलकते बाप के आँसू, सिसकती रात भर अम्मा
बुढ़ापे में किसी की बेबसी अच्छी नहीं लगती

कहीं पे जश्न का आलम, कहीं पे मुफ़लिसी तारी
चराग़ों के तले यह तीरगी अच्छी नहीं लगती

खिलौनों की जगह हाथों में बच्चों के कटोरे हैं
किसी मासूम आँखों में नमी अच्छी नहीं लगती

कभी जो साथ रहते थे, हुए हैं दूर वो मुझसे
मुझे यूँ दोस्तों की बेरुख़ी अच्छी नहीं लगती

तुम्हारी याद में अक्सर मैं ख़ुद को भूल जाता हूँ
जमाने को मेरी ये बे-ख़ुदी अच्छी नहीं लगती

© हिमकर श्याम

(चित्र गूगल से साभार)