Saturday, 14 June 2014

पिता


[पितृ दिवस पर]


जीवन के आधार में
लयबद्ध संस्कार में
नाम में, पहचान में 
झंझावतों, तूफान में
प्राणों पे उपकार पिता के

डाँट में, फटकार में
प्यार और दुलार में
बंदिशों, नसीहतों में
सबकी जरूरतों में
काँधे पर है हाथ पिता के

मनचाहे वरदान में
हर आँसू, मुस्कान में
अनजाने विश्वास में
सुरक्षा के अहसास में
मत भूलो अहसान पिता के

सादगी की सूरत में
करूणा की मूरत में
जीने के शऊर में
अम्मा के सिंदूर में
निश्छल हैं जज्बात पिता के

सिंधु सी लहक में
शौर्य की दमक में
अद्भुत संघर्ष में
अथाह सामर्थ्य में
अलहदा ख़्यालात पिता के

देह के आवरण में
नेह के आचरण में
रिश्तों के बंधन में
वंदन और नमन में
चरणों में कायनात पिता के ।

[पिता जी]


© हिमकर श्याम




Thursday, 5 June 2014

पर्यावरण की संरक्षा, हो सबका संकल्प






वायु, जल और यह धरा, प्रदूषण से ग्रस्त 
जीना दूभर हो गया,  हर प्राणी है त्रस्त।।

नष्ट हो रही संपदा, दोहन है भरपूर
विलासिता की चाह ने, किया प्रकृति से दूर।।  

जहर उगलती मोटरें, कोलाहल चहूँओर                                       
हरपल पीछा कर रहे, हल्ला गुल्ला शोर।।

आँगन की तुलसी कहाँ,दिखे नहीं अब नीम                                              
जामुन-पीपल कट गए, ढूँढे कहाँ हकीम।।

पक्षी,बादल गुम हुए, सूना है आकाश                
आबोहवा बदल गयी, रुकता नहीं विनाश।।         

शहरों के विस्तार में, खोये पोखर ताल           
हर दिन पानी के लिए, होता खूब बवाल।।

नदियाँ जीवनदायिनी, रखिए इनका मान                                             
कूड़ा-कचड़ा डाल कर,मत करिए अपमान।।                                  

ये प्राकृतिक आपदाएँ, करतीं हमें सचेत   
मौसम का बदलाव भी, देता अशुभ संकेत।।

कुदरत तो अनमोल है, इसका नही विकल्प                                    
पर्यावरण की संरक्षा, सबका हो संकल्प।।



 





© हिमकर श्याम 
(चित्र गूगल से साभार)