Saturday, 14 June 2014
Thursday, 5 June 2014
पर्यावरण की संरक्षा, हो सबका संकल्प
वायु, जल और यह धरा, प्रदूषण से ग्रस्त।
जीना दूभर हो गया, हर प्राणी है त्रस्त।।
नष्ट हो रही संपदा, दोहन है भरपूर।
विलासिता की चाह ने, किया प्रकृति से दूर।।
विलासिता की चाह ने, किया प्रकृति से दूर।।
जहर उगलती मोटरें, कोलाहल चहूँओर।
हरपल पीछा कर रहे, हल्ला गुल्ला शोर।।
आँगन की तुलसी कहाँ,दिखे नहीं
अब नीम।
जामुन-पीपल कट गए, ढूँढे
कहाँ हकीम।।
पक्षी,बादल गुम हुए, सूना है आकाश।
आबोहवा बदल गयी, रुकता नहीं विनाश।।
शहरों के विस्तार में, खोये पोखर ताल।
हर दिन पानी के लिए, होता खूब बवाल।।
नदियाँ जीवनदायिनी, रखिए इनका मान।
कूड़ा-कचड़ा डाल कर,मत करिए
अपमान।।
ये प्राकृतिक आपदाएँ, करतीं हमें सचेत।
मौसम का बदलाव भी, देता अशुभ संकेत।।
कुदरत तो अनमोल है, इसका नही विकल्प।
पर्यावरण की संरक्षा, सबका हो संकल्प।।
© हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)
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