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Saturday, 17 September 2016

फुहारें गुनगुनाती हैं, शज़र भी झूमता देखो



हवाओं में तरन्नुम  हैचमन गाने लगा  देखो
फुहारें  गुनगुनाती  हैं, शजर भी झूमता देखो


घटाएँ झूम कर  बरसीं, छमाछम नाचतीं  बूँदें
गुलाबी ये फ़ज़ा देखो, नशा बरसात का देखो


बुझाती तिश्नगी धरती, दिखातीं बिजलियाँ जल्वा
किसानों  की  ख़ुशी  देखो, मयूरा  नाचता  देखो


ज़मीं लगती नहाई सीनदी लहरा रही  जैसे
सुहाना हो गया मंज़र, बड़ी दिलकश फ़ज़ा देखो


क़हर  ढाती  हैं बरसातें, यहाँ कच्चे  मकानों पर
भरा है हर तरफ़ पानी, ख़फ़ा लगता ख़ुदा देखो


भिगोती रात भर हमको तुम्हारी याद की बारिश
कलेजे  को  चुभोती है, उमड़ती  यह घटा देखो



टपकती छत ये रोती है मुक़द्दर पर तेरे 'हिमकर'
हुआ दुश्वार अब जीना, बतायें हाल क्या  देखो 



© हिमकर श्याम


[तस्वीर : पुरातत्वविद डॉ हरेंद्र प्रसाद सिन्हा जी की ]

Monday, 27 July 2015

मनभावन बरसात सजन


मौसम की सौगात सजन
मनभावन बरसात सजन

छम-छम करती अमराई
गुमसुम नदियाँ लहराई
तृण-तृण छाई हरियाली
बहके पुरवा मतवाली
पात-पात मदमात सजन
मनभावन बरसात सजन

खिली वसुधा कर श्रृंगार
मन मगन गाये मल्हार
खुले मोरपंख सुनहरे
किसने इतने रंग भरे
मेघों की बारात सजन
मनभावन बरसात सजन

इन्द्रधनुष नभ पर छाये
चंचल चपला इठलाये
घन खेले आँख मिचौली
संग चाँद के अठखेली
पुलकित मनुआँ गात सजन
मनभावन बरसात सजन

गम और ख़ुशी का समास
कहीं उदासी, कहीं हास
कहीं दिखे है प्रीत रंग
कहीं मचलता है अनंग
छलक रहे जज्बात सजन
मनभावन बरसात सजन

छाये बादल कजरारे
खड़ा कदँब बाँह पसारे
कान्हा की वंशी बोले
हर्षित मन राधा डोले
दिल से दिल की बात सजन 
मनभावन बरसात सजन
      
मेघ झरे, जियरा धड़के
गीली पलकें, दृग छलके
तुम बिन सूना घर आँगन
पिया मिलन की लगी लगन
बूँदे करती घात सजन
मनभावन बरसात सजन

© हिमकर श्याम

(चित्र गूगल से साभार)

Tuesday, 15 July 2014

कहाँ छुपे हो मेघ तुम


(चित्र गूगल से साभार) 


सावन में धरती लगे, तपता रेगिस्तान  
सूना अम्बर देख के, हुए लोग हलकान  

कहाँ छुपे  हो मेघ तुम, बरसाओं अब नीर  
पथराये हैं नैन ये,  बचा न मन का धीर

बिन पानी व्याकुल हुए, जीव-जंतु इंसान
अपनी किस्मत कोसता, रोता बैठ किसान  

सूखे-दरके खेत हैंकैसे उपजे धान 
मॉनसून की मार से, खेती को नुकसान

खुशियों के लाले पड़े, बढ़े रोज संताप  
मौसम भी विपरीत है, कैसा यह अभिशाप

सूखे पोखर, ताल सब, रूठी है बरसात  
सूखे का संकट हरो, विनती सुन लो नाथ       

© हिमकर श्याम