हमसफ़र भी नहीं है न है राहबर
चल सको तो चलो साथ मेरे उधर
मेरे हालात से तुम रहे बेख़बर
हाल कितना बुरा है कभी लो ख़बर
साथ कुछ देर मेरे जरा तो ठहर
मान जा बात मेरी ओ जाने ज़िगर
याद तेरी सताती हमें रात भर
जागते जागते हो गयी फिर सहर
दिल पे करते रहे वार पे वार तुम
और चलाते रहे अपनी तीरे नज़र
तुमको जीभर के हमने न देखा कभी
वस्ल की साअतें थीं बड़ी मुख़्तसर
भूल सकता नहीं उनको हिमकर कभी
ज़ख्म दिल के भला कैसे जाएँगे भर
© हिमकर श्याम
[तस्वीर : फोटोग्राफिक क्लब रूपसी के अध्यक्ष श्रद्धेय डॉ सुशील कुमार अंकन जी की]