Sunday, 5 June 2016
Sunday, 8 May 2016
रब से ऊपर होतीं माएँ
दिल की बातें पढ़तीं माएँ
दर्द भले हम लाख छुपाएँ
दर्द भले हम लाख छुपाएँ
रहती हरदम साथ दुआएँ
हर लेती सब कष्ट बलाएँ
हर लेती सब कष्ट बलाएँ
नाम कई एहसास वही है
इक जैसी होती सब माएँ
इक जैसी होती सब माएँ
फ़ीके लगते चाँद सितारे
माँ के जैसा कौन बताएँ
माँ के जैसा कौन बताएँ
सारी पीड़ा हँस के सहती
कर देती माँ माफ़ ख़ताएँ
कर देती माँ माफ़ ख़ताएँ
माँ का रिश्ता सबसे प्यारा
रब से ऊपर होतीं माएँ
रब से ऊपर होतीं माएँ
ममता का कोई मोल नहीं
कैसे माँ का क़र्ज़ चुकाएँ
कैसे माँ का क़र्ज़ चुकाएँ
© हिमकर श्याम
(तस्वीर और रेखाचित्र मेरे भाँजे अंशुमान आलोक की)
Sunday, 24 April 2016
मुकम्मल बादशाई चाहता हूँ
मिटाना हर बुराई चाहता हूँ
ज़माने की भलाई चाहता हूँ
तेरे दर तक रसाई चाहता हूँ
लकीरों से नहीं हारा अभी मैं
मुक़द्दर से लड़ाई चाहता हूँ
दिलों के दरमियाँ बढ़ती कुदूरत
मैं थोड़ी अब सफाई चाहता हूँ
हुआ जाता हूँ मैं मुश्किल पसंदी
नहीं अब रहनुमाई चाहता हूँ
पलटकर वार करना है जरूरी
मैं अब जोर आज़माई चाहता हूँ
तेरी खामोशियाँ खलने लगी है
कहूँ क्या लब कुशाई चाहता हूँ
खुदा से और क्या माँगू भला मैं
ग़मों से कुछ रिहाई चाहता हूँ
गदाई अब नहीं मंज़ूर हिमकर
मुकम्मल बादशाई चाहता हूँ
© हिमकर श्याम
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