Saturday, 15 October 2016

शरद पूनो (सेदोका)


शरद पूनो
कौमुदी अमी धारा
झड़ते परिजात
अमानी कृष्ण
महारास की बेला  
मनमोहक निशा 

© हिमकर श्याम


(चित्र गूगल से साभार)



Saturday, 17 September 2016

फुहारें गुनगुनाती हैं, शज़र भी झूमता देखो



हवाओं में तरन्नुम  हैचमन गाने लगा  देखो
फुहारें  गुनगुनाती  हैं, शजर भी झूमता देखो


घटाएँ झूम कर  बरसीं, छमाछम नाचतीं  बूँदें
गुलाबी ये फ़ज़ा देखो, नशा बरसात का देखो


बुझाती तिश्नगी धरती, दिखातीं बिजलियाँ जल्वा
किसानों  की  ख़ुशी  देखो, मयूरा  नाचता  देखो


ज़मीं लगती नहाई सीनदी लहरा रही  जैसे
सुहाना हो गया मंज़र, बड़ी दिलकश फ़ज़ा देखो


क़हर  ढाती  हैं बरसातें, यहाँ कच्चे  मकानों पर
भरा है हर तरफ़ पानी, ख़फ़ा लगता ख़ुदा देखो


भिगोती रात भर हमको तुम्हारी याद की बारिश
कलेजे  को  चुभोती है, उमड़ती  यह घटा देखो



टपकती छत ये रोती है मुक़द्दर पर तेरे 'हिमकर'
हुआ दुश्वार अब जीना, बतायें हाल क्या  देखो 



© हिमकर श्याम


[तस्वीर : पुरातत्वविद डॉ हरेंद्र प्रसाद सिन्हा जी की ]

Monday, 15 August 2016

न कुछ बदला न आए दिन सुहाने


वही हालात हैं अब तक पुराने 
 कुछ बदला  आए दिन सुहाने 

किसे मतलब है ज़ख़्मों से हमारे 
कोई आता नहीं मरहम लगाने 

हमारी आँख के आँसू  सूखे
चले आए नये ग़म फिर रुलाने

कोई वादा नहीं उसने निभाया
उसे अब याद आते सौ बहाने

लिए उम्मीद हम बैठे अभी तक
वो लायेंगे विदेशों से ख़ज़ाने 

ज़रा सय्याद से बचना परिंदों
चला है जाल लेके फिर फँसाने

जुनूँ हिम्मत भरोसा है ख़ुदी पे 
चला जुगनू अँधेरे को हराने

जो हँस के कोई मिलता किसी से 
बना देती है दुनिया सौ फ़साने

ये दुनिया ख़ुदग़र्ज़ क्यूँ हो गई है
कोई आता नहीं मिलने मिलाने

रहेगी साथ कब तक बेबसी ये 
नहीं आता कोई यह भी बताने

भला क्यूँ फेर ली आँखें सभी ने 
तुम्हारे लद गए हिमकर ज़माने

© हिमकर श्याम

[तस्वीर फोटोग्राफिक क्लब रूपसी के अध्यक्ष श्रद्धेय डॉ सुशील कुमार अंकन जी की]