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Sunday, 9 February 2014

चाँदनी

(चित्र गूगल से साभार)

चाँदनी  
सूने आंगन में
लिख देती है
तुम्हारा नाम

अक्सर
तमाम रात
हंसती है
बावरी चाँदनी
बात-बेबात
देती है
यह संदेशा
बार-बार
कि तुम हो
मेरे आसपास

तुम्हारे-
वजूद की खुशबू
तैरने लगती है
अंधेरे कमरे में
हंस उठते हैं
सारे पल उदास
कितना खुशनुमा
होता है
तुम्हारे होने का
फकत अहसास

छा जाता है
अंर्तमन में
उमंग-उल्लास
भूल जाता हूं
सारे विरह ताप
बैचेनियों को
मिल जाता है
अल्प विराम
तुम्हारे नाम के
चंद हर्फ़ों में
छिपा हो जैसे
जीने का पैगाम

जानता हूं -
कि रह जाना है
फिर खाली हाथ
अब चाहे यह
भ्रम हो या विश्वास
या ठगती हो
बावरी चाँदनी  
हर रोज, हर बार
जो कुछ भी हो
सहर्ष सब स्वीकार।

© हिमकर श्याम








Sunday, 2 February 2014

वो चेहरा नजर आएगा













आपके बीते हुए कल में
एक नाम मेरा भी था
खंगालिए, यादों को जरा
वो चेहरा नजर आएगा


जीवन की आपाधापी में
बिखर गयीं सारी कड़ियां
खोलिए, अतीत के द्वार
गुजरा दौर नजर आएगा

वही सूरत, वही सोच
वही खूबियां हैं रगो में
झांकिए, दिल में एक बार
वही दोस्त नजर आएगा

© हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)