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Thursday, 14 February 2019

हिज्र की रात तो ढली ही नहीं



हिज्र  की रात तो ढली ही नहीं
वस्ल की  आरज़ू गई ही नहीं

मेरे दिल में थी बस तेरी चाहत
आरजू  और कोई थी  ही नहीं

मैंने तुझको  कहाँ  नहीं  ढूँढा
यार तेरी ख़बर मिली ही नहीं

इश्क़ से थी हयात में लज़्ज़त
ज़िन्दगी बाद तेरे जी ही नहीं

मिन्नतें इल्तिज़ा  न कम की थी
बात लेकिन कभी सुनी ही नहीं 

काश कोई सुराख़ मिल जाये
बंद कमरे में  रोशनी ही नहीं

उससे कोई  उमीद मत रखना
वो भरोसे का आदमी ही नहीं

हर जगह देखता तेरी सूरत
फ़िक़्र से दूर तू गई ही नहीं

इक अज़ब सा सुकूत है  हिमकर
बात बिगड़ी तो फिर बनी ही नहीं


© हिमकर श्याम

(चित्र गूगल से साभार)


Saturday, 31 October 2015

ज़िन्दगी दुश्वार लेकिन प्यार कर

मुश्किलों को हौसलों से पार कर
ज़िन्दगी दुश्वार लेकिन प्यार कर

सामने होती मसाइल इक नयी
बैठ मत जा गर्दिशों से हार कर

बात दिल में जो दबी कह दे उसे
इश्क़ है उससे अगर इज़हार कर

नफरतों का बीज कोई बो रहा
दोस्तों से यूँ न तू तक़रार कर

ढूंढता दिल चन्द खुशियों की घड़ी
अब ग़मों पर खुद पलट कर वार कर

दूर मंज़िल हैं अभी रस्ता कठिन
ज़िन्दगी की राह को हमवार कर

अपने ख़्वाबों की निगहबानी करो 
फायदा क्या ख़्वाहिशों को मार कर

है हमें लड़ना मुसलसल वक़्त से
हर घड़ी हासिल तज़ुर्बा यार कर


-हिमकर श्याम

(चित्र संयोजन : रोहित कृष्ण)

Thursday, 1 January 2015

हर किसी को दुआएँ नए साल में


अपने गम को भुलाएँ, नए साल में 
आप हम मुस्कुराएँ, नए साल में 

बेबसी का रहे अब न नामों निशाँ
दूर हों सब बलाएँ, नए साल में 

ज़िन्दगी पर भरोसा सलामत रहे 
फिर उम्मीदें जगाएँ, नए साल में 

रंग, ख़ुशबू मिले, फूल, तितली हँसे
ख़ुशनुमा हों फिज़ाएँ, नए साल में 

खौफ़, वहशत मिटे, यूँ न अस्मत लुटे
हों न आहत दिशाएँ, नए साल में

मज़हबी रंज़िशें बढ़ रहीं देखिए  
बात बिगड़ी बनाएँ, नए साल में 

क्यों अंधेरे में डूबी हुई बस्तियाँ 
जो हुआ सो भुलाएँ, नए साल में 

रो रही है धरा, देख आबोहवा 
चल धरा को हँसाएँ, नए साल में

थी नदी एक यहाँ पर, जहाँ हम खड़े 
वो नदी ढूंढ़ लाएँ, नए साल में 

फ़र्क हिमकर नहीं, गैर अपने सभी     
हर किसी को दुआएँ, नए साल में

नूतन वर्ष आपके और आपके अपनों के जीवन में सुख, समृद्धि, शांति, प्रसन्नता, सफ़लता और आरोग्य  लेकर आए...नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...

© हिमकर श्याम 

(चित्र गूगल से साभार)

Tuesday, 1 July 2014

थकन के सिवा




क्या सराबों में रक्खा थकन के सिवा
ज़िन्दगी क्या है रंजो मेहन के सिवा

अपनी किस्मत से बढ़कर, मिला है किसे
क्या मिला खूँ जलाकर घुटन के सिवा

अजनबी शहर में ठौर मिल जाएगा
पर सुकूं ना मिलेगा वतन के सिवा

हर कदम पे हुनर काम आता यहां
कौन देता भला साथ फ़न के सिवा

आप पर मैं निछावर करूँ, क्या करूँ
पास क्या है मेरे जान-ओ-तन के सिवा

कौन गुलशन में तेरे न बिस्मिल हुआ
किसको गुल रास आया चुभन के सिवा

ढूंढते सब रहे खुशबुओं का पता
बू--गुल है कहाँ इस चमन के सिवा

इस जहाँ में नहीं कोई जा--क़रार
इक फ़क़त आपकी अंजुमन के सिवा

यूँ तो शहरे निगाराँ बहोत हैं मगर
कोई जँचता नहीं है वतन के सिवा

जो मिला है यहां छूटता जाएगा
साथ में क्या रहेगा कफन के सिवा

फ़र्क़ अच्छे बुरे का न वो कर सका
उसने देखा न कुछ पैरहन के सिवा

सराबों : मृगतृष्णा, रंजो मेहन : दुःख और तकलीफ़, बिस्मिल : ज़ख़्मी, शहरे निगाराँ : महबूब शहर, पैरहन: लिबास

(अज़ीज़ दोस्त और शायर जनाब अरमान 'ताज़' जी का तहे दिल से शुक्रिया जिनकी मदद से यह गज़ल मुकम्मल हुई.)

© हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)

Saturday, 24 May 2014

सुलगती रेत पे



मुख़्तसर सी ज़िन्दगी तो हसरतों में ढल गयी
कुछ उम्मीदों पर कटी, कुछ आंसुओं पे पल गयी  

ले गयी किस्मत जिधर हम चल दिए उठकर उधर
जब यकीं हद से बढ़ा, ये चाल हमसे चल गयी 

ख़्वाहिशों की गठरियां सर पे लिए फिरते रहे
वक़्त की ठोकर लगी जब आह दिल की खल गयी 

किस कदर मातम मचा था चाहतों की क़ब्र पर
पर ग़मे दुनिया को जिस सांचों में ढाला ढ़ल गयी

हम सुलगती रेत पे भटका किये हैं उम्र भर
इन सुराबों से पड़ा नाता, घटाएं छल गयी

आते-आते रह गयी लब पे हमारे फिर हंसी
धड़कनों की नग़मग़ी पे मेरी जान संभल गयी

सब ख़राशें मिट गयीं दिल पर लगी थीं जो कभी
आप आये तो शमा महफिल में जैसे जल गयी

आपने तो ख़ुश्क ही कर दी थी उल्फ़त की नदी
डूब कर मुझ में जो उबरी, होके ये जल-थल गयी

क्या मिला हिमकरदहर में इक मुसीबत के सिवा
हाथ ख़ुशियों के उठे जब भी महूरत टल गयी

© हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)