रूठी ख़ुशियों को फिर आज़ मनाते हैं
झिलमिल उम्मीदों के दीप जलाते हैं
जिनके घर से दूर अभी उजियारा है
उनके चौखट पर इक दीप जलाते हैं
जगमग जगमग लहराते अनगिन दीपक
निष्ठुर तम हम कुछ पल को बिसराते हैं
रिश्तों में कितनी कड़वाहट दिखती है
फिर अपनेपन का वो भाव जगाते हैं
घनघोर अमावस से लड़ता है दीपक
पुरनूर चिराग़ों से रात सजाते हैं
शुभ ही शुभ हो, जीवन में अब मंगल हो
मिलजुल दीपों को त्योहार मनाते हैं
[दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ]
(चित्र गूगल से साभार)
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