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Wednesday, 11 November 2015

उम्मीदों के दीप जलाते हैं


रूठी ख़ुशियों को फिर आज़ मनाते हैं 
झिलमिल उम्मीदों के दीप जलाते हैं 

जिनके घर से दूर अभी उजियारा है
उनके चौखट पर इक दीप जलाते हैं 

जगमग जगमग लहराते अनगिन दीपक 
निष्ठुर तम हम कुछ पल को बिसराते हैं 

रिश्तों में कितनी कड़वाहट दिखती है 
फिर अपनेपन का वो भाव जगाते हैं 

घनघोर अमावस से लड़ता है दीपक 
पुरनूर चिराग़ों से रात सजाते हैं 

शुभ ही शुभ हो, जीवन में अब मंगल हो 
मिलजुल दीपों को त्योहार मनाते हैं 


[दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ]

© हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)