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Tuesday, 5 January 2016

खिड़कियों से झाँकती है रोशनी नए साल की



खिड़कियों से झाँकती है रोशनी नए साल की
आ गयी फिर वो घड़ी है शाम इस्तकबाल की

चार दिन की चाँदनी यह फिर अँधेरी रात है
ज़िंदगी की राह मुश्किल, फ़िक्र आटे दाल की

याद बन के रह गयीं घड़ियाँ पुराने साल की
धड़कने  गिन- गिन के रखिए हर साल की

आँकड़े कुछ और कहते पर हकीकत  कुछ अलग
सर-ब-सर क़िस्सा वही है, बात क्या तिमसाल की

दिन महीने, साल गुजरें हाल अपना बस वहीं
ज़िक्र क्या करिए किसी से सैकड़ों जंजाल की

रोज मुश्किल इक नयी है ज़िंदगी के सामने
है किसे फुर्सत यहाँ जो सुन सके बेहाल की

साल-ए-नौ से हैं उमीदें साल-ए-माजी की तरह
उग रहा सूरज नया शुरुआत अब इसमाल की

भूल कर सारे गमों को मुस्कुरा 'हिमकर' जरा
खूँटियों पर टाँग दे  सब याद बीते साल की


[नया साल आपके और आपके अपनों के जीवन में सुख, समृद्धि, सफ़लता और आरोग्य  लेकर आए...
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...]

© हिमकर श्याम

(चित्र गूगल से साभार)