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Thursday, 24 March 2016
Saturday, 28 February 2015
रंग नहीं होली के रंगों में
![]() |
(चित्र गूगल से साभार)
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कोयल कूकी,
दिल में एक टीस उठी
पागल भोरें मंडराने लगे,
अधखिली कलियों के अधरों पर
पलाश फूटे या आग
किसी मन में,
चूड़ी की है खनक कहीं,
कहीं थिरकन है अंगों में,
ढोल-मंजीरों की थाप
गूंजती है कानों में
मौसम हो गया है अधीर,
बिखर गये चहूं ओर रंग-अबीर
पर बिन तुम्हारे
रंग नहीं होली के रंगों में |
© हिमकर श्याम
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