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Thursday, 28 August 2014

हमसफ़र सपने

(चित्र गूगल से साभार)
अविरल घूमा करते हैं
हमारे आस-पास
तैरते हैं हर वक़्त
हमारी आँखों में
ख़्वाहिशों और कोशिशों के
एकमात्र साक्षी-सपने

बनते-बिखरते
सुलगते- मचलते
गिरते- संभलते
फूल सा महकते
काँच सा चटकते
हसरतों से तकते
ये बेज़ुबां सपने

अलग-अलग रंगों में
रूपों-आकारों में
आहों-उलाहनों में
गीतों में छंदों में
उदासियों-तसल्लियों में
देहरी पर, आँगन में
रहते हैं साथ-साथ
हैं हमसफर सपने

इन्हीं सपनों को
संजोया था हमने
कभी मन में
इन्हीं सपनों में
तलाशते रहे हम
जीवन के रंग
सपने, कभी हो न सके पूरे
रह गए हर बार अधूरे  
फिर भी बुनते रहें हम
सपनों की सतरंगी झालर
उम्मीदें चूमती रहीं
सपनों का माथा
वक़्त कतरता रहा
सपनों के पर
टूटते-दरकते रहे
सपने दर सपने
बिखरती रहीं ख़ुशियाँ तमाम
टूटते रहे धैर्य और विश्वास

ओह! ये रेज़ा-रेज़ा सपने।

© हिमकर श्याम