Monday, 2 January 2017

नया साल आया, मुबारक घड़ी है


यकीनन नज़र में चमक आरज़ी है 
महज़ चार दिन की यहाँ चाँदनी है

जिधर  देखिए  हाय तौबा मची है
हथेली पे सरसों भला कब उगी है

चराग ए मुहब्बत बचायें  तो  कैसे
यहाँ नफ़रतों की हवा चल पड़ी है

फ़क़त आंकड़ों में नुमायाँ तरक्की
यहाँ मुफलिसी दर-बदर फिर रही है

कहाँ तितलियाँ हैं, हुए गुम परिंदे
फिज़ाओं में किसने ज़हर घोल दी है

उधर कोई बस्ती जलायी गई है
धुँआ उठ रहा है, ख़बर सनसनी है

चला छोड़ हमको ये बूढ़ा दिसम्बर
किसी अजनबी सा खड़ा जनवरी है

नईं हैं उमीदें, ख़ुशी का समाँ है  
नया साल आया, मुबारक घड़ी है 

नहीं रब्त बाकी बचा कोई हिमकर   
जहाँ दोस्ती थी, वहाँ दुश्मनी है

© हिमकर श्याम  



[तस्वीर : पुरातत्वविद डॉ हरेंद्र प्रसाद सिन्हा जी की ]



Thursday, 3 November 2016

ज़िंदगी तुझसे निभाना आ गया

[आज इस 'ब्लॉगके तीन वर्ष पूरे हो गए। इन तीन वर्षों में आप लोगों का जो स्नेह और सहयोग मिलाउसके लिए तहे दिल से शुक्रिया और आभार। यूँही आप सभी का स्नेह और मार्गदर्शन मिलता रहे यही चाह है। इस मौक़े पर एक ग़ज़ल आप सब के लिए सादर,] 



ज़िंदगी तुझसे निभाना आ गया
हौसलों को आज़माना आ गया

रफ्ता-रफ्ता ज़िन्दगी कटती गयी
और ग़म से दिल लगाना आ गया

सहते सहते दर्द की आदत पड़ी
चोट खाकर मुस्कुराना आ गया

तितलियाँ भी बाग़ में आने लगीं
देखिए मौसम सुहाना आ  गया

मुद्दतों  के बाद उनसे हम  मिले
लौट के गुजरा ज़माना आ गया

हो रहे कमज़ोर रिश्ते आजकल
देखिए  कैसा  ज़माना आ गया

हार पर  आँसू  बहाते  कब तलक
जीत को मकसद बनाना आ गया

हो  गयी नज़रें इनायत आपकी
हाथ में जैसे खज़ाना आ गया

फितरतें हिमकर सियासी हो गई
बात तुमको भी बनाना आ गया

© हिमकर श्याम 

[तस्वीर : फोटोग्राफिक क्लब रूपसी के अध्यक्ष श्रद्धेय डॉ सुशील कुमार अंकन जी की] 

Saturday, 15 October 2016

शरद पूनो (सेदोका)


शरद पूनो
कौमुदी अमी धारा
झड़ते परिजात
अमानी कृष्ण
महारास की बेला  
मनमोहक निशा 

© हिमकर श्याम


(चित्र गूगल से साभार)