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Saturday, 23 February 2019

जन्नत लहूलुहान


घाटी में षड्यंत्र से, दहला हिंदुस्तान 
सहमे पेड़ चिनार के, जन्नत लहूलुहान

बिना युध्द मारे गये, अपने सैनिक वीर 
आहत पूरा देश है, हृदय-हृदय में पीर

पत्नी बेसुध है पड़ी,बच्चा करे विलाप
अम्मा छाती पीटती, मौन खड़ा है बाप

रक्त वर्ण झेलम हुई, क्षत-विक्षत है लाश
कितनी गहरी वेदना, फफक रहा आकाश

निगरानी की चूक से, आतंकी आघात
हमले की फ़िराक़ में, दुश्मन थे तैनात

घात नहीं यह जंग है, अब तो हो प्रतिकार
साजिश में तल्लीन जो, उनपर भी हो वार

कब तक दूध पिलाएगा, बुरे इरादे भाँप
डँसते हैं हर बार ही, आस्तीन के साँप

ग़म गुस्सा आक्रोश है, पीड़ा अतल अथाह
राजनीति करती कहाँ, इन सब की परवाह

कश्मीरी से बैर क्यों, आख़िर क्या है दोष 
उन्मादी इस दौर में, बचा रहे कुछ होश 

दहशतगर्दों के लिए, क्या मजहब क्या जात
अगर हुकूमत ठान ले, क्या उनकी औक़ात


© हिमकर श्याम 

(चित्र unsplash से साभार)


Tuesday, 26 January 2016

ऐ वतन तेरे लिए यह जान भी क़ुरबान है


दिल में हिंदुस्तान है, सांसों में हिंदुस्तान है
ऐ वतन तेरे लिए यह जान भी क़ुरबान है

नाज़ हमको है बहुत गंगो जमन तहज़ीब पर
अम्न का पैगाम अपनी  खूबियाँ पहचान है

हिन्द  की  माटी  में  जन्मे  सूर, मीरा जायसी
मीर, ग़ालिब की जमीं ये, भूमि ये रसख़ान की

धर्म, भाषा, वेशभूषा है अलग फिर भी  मगर
मुल्क़ की जब बात होती सब लुटाते जान हैं

खूँ  शहीदों  ने बहाया, हँस  के फाँसी पर चढे
है अमिट पहचान उनकी, याद हर बलिदान है

सर  कटाना है गवारा पर झुकेगा सर नहीं
हर जुबाँ पर गीत क़ौमी, ये तिरंगा शान है

बाइबिल, गुरु ग्रन्थ साहिब, वेद ओ' क़ुरआन है
नाम  सबके  हैं अलग पर,  एक सबका ज्ञान है

राष्ट्र  का हो नाम ऊँचा,  क़ौमी यकजहती रहे
फ़िक़्र में सबके वतन हो, बस यही अरमान है

ख़ाक बन हिमकर इसी माटी में रहना चाहता
गूँजता  सारे  जहाँ  में  हिन्द का  यश गान है


© हिमकर श्याम


(चित्र गूगल से साभार)

Saturday, 13 September 2014

हिंदी अपनी शान हो


आज़ादी बेशक़ मिली, मन से रहे गुलाम।
राष्ट्रभाषा पिछड़ गयी, मिला न उचित मुक़ाम।।

सरकारें चलती रहीं, मैकाले की चाल।
हिंदी अपने देश में, उपेक्षित बदहाल।।

शिक्षा, शासन हर जगह, अंग्रेजी राज।
निज भाषा को छोड़कर, परभाषा पर नाज।।

मीरा, कबीर जायसी, तुलसी, सुर, रसखान। 
भक्तिकाल ने बढ़ाया, हिंदी का सम्मान।। 

देश प्रेमियों ने लिखे, थे विप्लव के गान।
इष्ट क्रांति की चेतना, हिंदी का वरदान।।

हिंदी सबको जोड़ती, करती है सत्कार।
विपुल शब्द भण्डार है, वैज्ञानिक आधार।।

स्वर व्यंजन के मेल का, नहीं है कोई जोड़। 
देवनागरी को कहें, ध्वनि शास्त्री बेजोड़।। 

बिन हिंदी चलता नहीं, भारत का बाज़ार।  
टी .वी., फिल्मों को मिला, हिंदी से विस्तार।। 

भाषा सबको बाँधती, भाषा है अनमोल।
हिंदी उर्दू मिल गले, देती हैं रस घोल।।

सब भाषा को मान दें, रखें सभी का ज्ञान। 
हिंदी अपनी शान हो, हिंदी हो अभिमान।। 

हिंदीजन मिल कर करें, हिंदी का उत्थान।
हिंदी हिंदुस्तान की, सदियों से पहचान।।
© हिमकर श्याम  

(चित्र गूगल से साभार)

[आप सभी को हिंदी दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ !!]